Gratuity Rule: नौकरी छोड़ने या सेवानिवृत्त होने के बाद मिलने वाली ग्रेच्युटी एक ऐसा लाभ है जो कर्मचारी की निष्ठा और सेवा को सम्मान देने के लिए दिया जाता है। यह भुगतान कर्मचारी को उसके अंतिम वेतन और नौकरी की कुल अवधि के आधार पर मिलता है। कंपनी में लगातार पांच साल तक सेवाएं देने वाले कर्मचारियों को यह लाभ मिलने का प्रावधान है। ग्रेच्युटी एक्ट 1972 के अंतर्गत यह एक वैधानिक अधिकार है जिसे किसी भी कंपनी द्वारा रोका नहीं जा सकता।
कितने साल पर बनता है हक
सामान्य रूप से ग्रेच्युटी पाने के लिए कर्मचारी को कम से कम पांच साल तक नौकरी करनी होती है। यदि कोई कर्मचारी 2020 में जॉइन करता है और 2025 में इस्तीफा देता है, तो उसे ग्रेच्युटी का लाभ मिलेगा। लेकिन यदि वह 2022 या 2023 में ही नौकरी छोड़ देता है, तो वह इसका हकदार नहीं होता। इसलिए कंपनी बदलने से पहले इस नियम को समझना जरूरी होता है ताकि आप अपने मेहनत के पैसे से वंचित न रह जाएं।
नोटिस पीरियड भी जोड़ा जाएगा
कई कर्मचारियों के मन में यह सवाल होता है कि क्या नोटिस पीरियड को भी नौकरी की अवधि में शामिल किया जाता है। नियमों के अनुसार, नोटिस अवधि भी नौकरी का हिस्सा मानी जाती है क्योंकि इस दौरान कर्मचारी काम करता रहता है। यदि कोई व्यक्ति 4 साल 10 महीने की सेवा के बाद 2 महीने का नोटिस देता है, तो कुल अवधि 5 साल मानी जाएगी। ऐसे में उसे पूरी ग्रेच्युटी मिलना तय होता है।
कुछ मामलों में 5 साल की सीमा नहीं
हालांकि सामान्य स्थिति में 5 साल की नौकरी जरूरी है, लेकिन कुछ खास परिस्थितियों में यह शर्त नहीं लागू होती। यदि कर्मचारी की नौकरी के दौरान मृत्यु हो जाती है या वह स्थाई रूप से अक्षम हो जाता है, तो ग्रेच्युटी दी जाती है चाहे उसने कितने भी साल काम किया हो। यह राशि कर्मचारी के द्वारा नामित व्यक्ति को मिलती है जो नौकरी के समय फॉर्म एफ में दर्ज किया गया होता है।
चार साल आठ महीने पर भी मिलता है लाभ
कई अदालतों ने यह साफ किया है कि यदि कोई कर्मचारी कम से कम 4 साल और 240 दिन यानी लगभग 8 महीने की सेवा करता है, तो वह ग्रेच्युटी पाने का हकदार बन सकता है। कंपनियों के HR डिपार्टमेंट को इस नियम की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे गलत जानकारी देकर कर्मचारियों का नुकसान न करें। यह नियम विशेष रूप से मेट्रो सिटी में लागू होता है जहां साल में कम से कम 240 दिन काम करने की गिनती होती है।
कैसे होती है ग्रेच्युटी की गणना
ग्रेच्युटी की राशि की गणना एक फॉर्मूले से की जाती है जो अंतिम ड्रॉ सैलरी और कार्य वर्षों की संख्या पर आधारित होता है। यह फॉर्मूला है—(15 × अंतिम वेतन × कार्य के साल)/26। इसमें अंतिम वेतन में बेसिक पे और महंगाई भत्ता शामिल होता है। मान लीजिए कोई कर्मचारी 20,000 रुपये के अंतिम वेतन पर 6 साल काम करता है, तो उसकी ग्रेच्युटी होगी (15×20000×6)/26 = ₹69,231।
किसे देना होता है भुगतान
ग्रेच्युटी का भुगतान कंपनी द्वारा सीधे कर्मचारी को या उसके नामित व्यक्ति को किया जाता है। यदि कर्मचारी की मृत्यु हो चुकी हो तो नामिनी को यह राशि मिलती है। भुगतान आमतौर पर सेवा समाप्ति के 30 दिनों के भीतर करना अनिवार्य होता है। यदि कंपनी इसमें देरी करती है, तो उसे ब्याज के साथ भुगतान करना होता है, जो कि कर्मचारी का अधिकार है।
छोटे संगठनों में क्या नियम
ग्रेच्युटी एक्ट 1972 उन संस्थानों पर लागू होता है जहां कम से कम 10 कर्मचारी काम करते हैं। यदि कोई छोटा व्यवसाय भी इस संख्या को पार करता है तो उसे भी ग्रेच्युटी नियमों का पालन करना होगा। इसके बाद यदि कर्मचारी की सेवा अवधि और अन्य शर्तें पूरी होती हैं, तो उसे ग्रेच्युटी न देना गैरकानूनी माना जाएगा। छोटे संगठनों के लिए भी यह जानकारी आवश्यक है।
ऑफर लेटर की भाषा मायने रखती है
कई बार कंपनियां ऑफर लेटर में ग्रेच्युटी को लेकर अस्पष्ट बातें लिखती हैं। कर्मचारियों को अपने ऑफर लेटर को ध्यान से पढ़ना चाहिए कि क्या ग्रेच्युटी का कोई उल्लेख है या नहीं। हालांकि ग्रेच्युटी एक कानूनी हक है, लेकिन दस्तावेज़ों में स्पष्टता होना विवाद से बचने के लिए जरूरी होता है। यदि कंपनी जानबूझकर इसे छिपाती है तो कर्मचारी श्रम आयुक्त से शिकायत कर सकता है।
कैसे करें क्लेम और शिकायत
ग्रेच्युटी के लिए कर्मचारी को कंपनी से फॉर्म I भरकर आवेदन करना होता है। यदि कंपनी भुगतान नहीं करती है, तो जिला श्रम अधिकारी या कंट्रोलिंग अथॉरिटी को शिकायत की जा सकती है। कानूनन यह शिकायत सेवा समाप्ति के 30 दिन के भीतर की जा सकती है। अधिक जानकारी के लिए श्रम मंत्रालय की वेबसाइट पर भी दिशा-निर्देश मौजूद होते हैं।
Disclaimer
यह लेख सामान्य जानकारी पर आधारित है और इसका उद्देश्य पाठकों को जागरूक करना है। ग्रेच्युटी से जुड़े मामलों में हर केस अलग हो सकता है। सटीक जानकारी और अधिकारों के लिए आप श्रम कानून विशेषज्ञ या आधिकारिक स्रोत से सलाह लें।