Ancestor Property Tax: भारत में खानदानी या पैतृक संपत्ति किसी भी परिवार के लिए एक अहम धरोहर होती है। यह संपत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती है, लेकिन जब इसे बेचना या किराए पर देना होता है, तो टैक्स से संबंधित कई पहलुओं को समझना जरूरी हो जाता है। विरासत में मिली संपत्ति पर टैक्स की गणना और नियम सामान्य संपत्ति से अलग होते हैं, जिससे कई लोग इसे लेकर भ्रमित रहते हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि खानदानी संपत्ति पर कौन-कौन से टैक्स लागू होते हैं और आप कैसे टैक्स बचा सकते हैं।
Capital Gains Tax
खानदानी संपत्ति को बेचने पर पूंजीगत लाभ कर लगता है। यह टैक्स दो प्रकार का होता है:
दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (LTCG): अगर संपत्ति को 24 महीने से अधिक समय तक रखा गया है, तो इसे दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के तहत कैटेगरी किया जाता है। इस पर 20 प्रतिशत टैक्स लगता है, जिसमें इंडेक्सेशन, सरचार्ज और सेस भी शामिल होते हैं। इंडेक्सेशन का मतलब है कि मुद्रास्फीति के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए खरीद लागत को समायोजित किया जाता है, जिससे टैक्स बोझ कम होता है।
अल्पकालिक पूंजीगत लाभ (STCG): अगर संपत्ति को 24 महीने से कम समय तक रखा गया है, तो इस पर आपकी सामान्य आय के आधार पर टैक्स लगता है। यह टैक्स आपकी आयकर स्लैब के अनुसार तय किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, अगर आपके पिता ने 2005 में ₹10 लाख में जमीन खरीदी थी, और 2020 में उनकी मृत्यु के बाद यह संपत्ति आपको विरासत में मिली। अब, यदि आप 2024 में इसे ₹50 लाख में बेचते हैं, तो इस पर दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (LTCG) लागू होगा। इस स्थिति में 2005 से 2024 तक की होल्डिंग अवधि के आधार पर इंडेक्सेड खरीद लागत निकालकर कर योग्य लाभ की गणना की जाएगी।
प्रॉपर्टी टैक्स
हर संपत्ति के मालिक को नगर निगम द्वारा प्रॉपर्टी टैक्स देना होता है। यह टैक्स संपत्ति के स्थान, क्षेत्रफल और बाजार मूल्य के आधार पर तय होता है। अगर यह टैक्स समय पर नहीं दिया जाता, तो उस पर दंड या ब्याज भी लग सकता है। यह टैक्स हर साल देना अनिवार्य होता है।
किराए से होने वाली आय पर इनकम टैक्स
अगर आप अपनी खानदानी संपत्ति को किराए पर देते हैं, तो उससे होने वाली आय पर भी टैक्स लगता है। यह किराया आपकी कुल आय में जोड़कर आपकी आयकर स्लैब के अनुसार टैक्स लगाया जाता है। इसके साथ ही, कुछ कटौतियाँ भी मिल सकती हैं जैसे कि स्टैंडर्ड डिडक्शन और ब्याज भुगतान।
टैक्स छूट के उपाय
खानदानी संपत्ति से टैक्स बचाने के लिए कुछ कानूनी छूटें भी उपलब्ध हैं। आयकर कानून की धारा 54 के तहत, यदि आप बिक्री से प्राप्त राशि का उपयोग दो साल के भीतर नई आवासीय संपत्ति खरीदने या तीन साल के भीतर उसका निर्माण करने में करते हैं, तो पूंजीगत लाभ पर आंशिक या पूर्ण छूट मिल सकती है।
इसके अलावा, धारा 54EC के तहत ₹50 लाख तक की राशि को NHAI या REC जैसी अधिसूचित बॉन्ड्स में निवेश करने पर भी टैक्स छूट मिलती है। हालांकि, इसमें पांच साल की लॉक-इन अवधि होती है। इस तरह के विकल्पों से आप अपनी टैक्स लाइबिलिटी को कम कर सकते हैं।
खानदानी प्रॉपर्टी बेचने की प्रक्रिया
विरासत प्रमाण पत्र: सबसे पहले आपको यह साबित करना होगा कि आप उस संपत्ति के वैध उत्तराधिकारी हैं। इसके लिए आपको कोर्ट से विरासत प्रमाण पत्र प्राप्त करना होता है।
टीडीएस कटौती: यदि प्रॉपर्टी की बिक्री कीमत ₹50 लाख या उससे अधिक है, तो खरीदार को 1% टीडीएस काटना होता है। यह टीडीएस सरकार को जमा किया जाता है।
कैपिटल गेन्स गणना: संपत्ति बेचने से पहले आपको इसकी होल्डिंग अवधि और इंडेक्सेशन के आधार पर पूंजीगत लाभ की गणना करनी होती है। इसके बाद, इस जानकारी को आयकर रिटर्न में सही तरीके से दर्ज करना जरूरी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या विरासत में मिली संपत्ति पर टैक्स लगता है?
हां, विरासत में मिली संपत्ति पर टैक्स तब लगता है जब उसे बेचा या किराए पर दिया जाता है। यह टैक्स पूंजीगत लाभ कर या इनकम टैक्स के रूप में हो सकता है।क्या खानदानी संपत्ति पर और स्व-अर्जित संपत्ति पर टैक्स के नियम अलग होते हैं?
नहीं, पूंजीगत लाभ कर के नियम दोनों प्रकार की संपत्तियों पर समान होते हैं, केवल होल्डिंग अवधि में अंतर होता है।
निष्कर्ष और सलाह
खानदानी संपत्ति पर टैक्स की प्रक्रिया जटिल हो सकती है, लेकिन अगर सही तरीके से योजना बनाई जाए तो टैक्स का बोझ कम किया जा सकता है। संपत्ति बेचने से पहले आपको होल्डिंग अवधि, इंडेक्सेशन और उपलब्ध टैक्स छूट के विकल्पों को समझना चाहिए। टैक्स बचाने के लिए धारा 54 और 54EC का लाभ उठाएं और कानूनी दस्तावेज़ों को समय पर अपडेट रखें। इसके अलावा, किसी अनुभवी कर सलाहकार से मार्गदर्शन लेना भी फायदेमंद साबित हो सकता है।